Varn vichchhed

Varn vichchhed (वर्ण-विच्छेद)

हिन्दी व संस्कृत भाषा में व्याकरण का बहुत महत्त्व है | व्याकरण का सबसे पहला अंग है वर्ण | आज हम वर्ण-विच्छेद (Varn vichchhed) तथा वर्ण-संयोजन के विषय में विस्तृत अध्ययन करेंगे |

वर्ण-विच्छेद  :- किसी भी भाषा में विद्यमान शब्दों में प्रयुक्त सभी वर्णों (व्यंजन व स्वर) को अलग-अलग (पृथक्-पृथक्) करने की प्रक्रिया को वर्ण-विच्छेद कहते हैं | वर्ण-विच्छेद को वर्ण-वियोग भी कहते हैं |

वर्ण-संयोजन  :- अलग-अलग (पृथक्-पृथक्) वर्णों को एक कर देने की प्रक्रिया वर्ण-संयोजन कहलाता है | वर्ण-संयोजन को वर्ण-संयोग भी कहते हैं |

वर्ण-विच्छेद में विद्यमान शब्द के व्यंजन को अलग करके उसको “हलन्त” (्) कर देते हैं तथा प्रयुक्त मात्रा को पूर्ण स्वर के रूप में लिख देते हैं , इसी तरह से अलग-अलग व्यंजन व स्वर को मात्रा के साथ मिला देते हैं तो वर्ण-संयोजन (वर्ण-संयोग) हो जाता है |

स्वर वर्ण      मात्रा                     शब्द

अ             कोई मात्रा नहीं   अज:, कमलम्, अजय: इत्यादि

आ                 ा                 राम:, नासिका, आम्र: इत्यादि

इ                     ि                हिमालय:, शिक्षक:, शिमला इत्यादि

ई                     ी                सीता, गीता, क्रीडा इत्यादि

उ                     ु                 पुरूष:, कुरूप:, दुःख: इत्यादि

ऊ                   ू                  सूर्य:, कूप:, पूर्णम् इत्यादि

ऋ                   ृ                  कृषक:, सृष्टि, पृथ्वी इत्यादि

ए                     े                  देव:, सेविका, नरेन्द्र: इत्यादि

ऐ                     ै                  एकैक:, सदैव इत्यादि

ओ                   ो                 कोमल, कोकिला, मोनिका इत्यादि

औ                   ौ                  औद्यागिक: इत्यादि

वर्ण-विच्छेद: (वर्ण-वियोग:) Varn vichchhed

उदाहरण –

कमलम्   = क् + अ + म् + अ + ल् + अ + म् |

अजय:    = अ + ज् + अ + य् + अ: |

नासिका = न् + आ + स् + इ + क् + आ |

आम्र:     = आ + म् + र् + अ: |

मूर्धन्य:   = म् + ऊ + र् + ध् + अ + न् + य् + अ: |

तालव्य:  = त् + आ + ल् + अ + व् + य् + अ: |

ग्रहणम्  = ग् + र् + अ + ह् + अ + ण् + अ + म् |

वज्र:      = व् + अ + ज् + र् + अ: |

प्रगति:  = प् + र् + अ + ग् + अ + त् + इ: |

ब्रह्मचारी = ब् + र् + अ + ह् + म् + अ + च् + आ + र् + ई |

जाह्नवी = ज् + आ + ह् + न् + अ + व् + ई |

सरस्वती = स् + अ + र् + अ + स् + व् + अ + त् + ई |

कर्म:       = क् + अ + र् + म् + अ: |

सप्तर्षि:   = स् + अ + प् + त् + अ +र् + ष् +इ: |

वित्तम्     = व् + इ + त् + त् + अ + म् |

सिद्धार्थ: = स् + इ + द् + ध् + आ + र् + थ् + अ: |

शब्द:     = श् + अ + ब् + द् + अ: |

पंकजम्  = प् + अ + ङ् + क् + अ + ज् + अ + म् |

व्यंजनम् = व् + य् + अ + ञ् + ज् + अ + न् + अ + म् |

कंठ:      = क् + अ + ण् + ठ् + अ: |

सन्धि:    = स् + अ + न् + ध् + इ: |

प्रारम्भ:  = प् + र् + आ + र् + अ + म् + भ् + अ: |

काँस्कान् = क् + आँ + स् + क् + आ + न् |

कस्मिंश्चिद् = क् + अ + स् + म् + इ + न् + श् + च् + इ + द् |

पुँल्लिङ्गम्  = प् + अँ + ल् + ल् + इ + ग् + अ + म् |

संवाद:      = स् + अ + म् + व् + आ + द् + अ: |

दुःखम्      = द् + उ: + ख् + अ + म् |

प्रात:काल: = प् + र् + आ + त् + अ: + क् + आ + ल् + अ: |

वर्ण-संयोजन (वर्ण-संयोग)  

उदाहरण –

द् + आ + श् + अ + र् + अ + थ् + इ: = दाशरथि: |

ह् + इ + म् + आ + ल् + अ + य् + अ: = हिमालय: |

क् + ऋ + ष् + ण् + अ:                       = कृष्ण: |

न् + अ + र् + ए + न् + द् + र् + अ:     = नरेन्द्र: |

म् + अ + ञ् + ज् + उ + ल् + अ:         = मंजुल: |

प् + उ + ष् + क् + अ + र् + अ:           = पुष्कर: |

क् + उ + क् + क् + उ + ट् + अ:          = कुक्कुट: |

स् + व् + अ + स् + त् + इ + क् + अ:   = स्वस्तिक: |

श् + इ + क् + ष् + अ + क् + अ:         = शिक्षक: |

स् + अ + ङ् + ग् + अ + ण् + अ + क् + अ + म् = संगणकम् |

क् + अ + न् + द् + उ + क् + अ:          = कन्दुक: |

ध् + आ + र् + ष् + ट् + य् + अ + म्      = धार्ष्ट्यम् |

क् + आ + र् + त् + स् + न् + य् + अ + म् = कार्त्स्न्यम् |

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