ल्यप् प्रत्यय (Lyap pratyaya in Sanskrit)
इस प्रत्यय का (Lyap pratyaya in sanskrit) प्रयोग “धातु पूर्व उपसर्ग” होने पर किया जाता है | “ल्यप्” प्रत्यय एक कृदन्त प्रत्यय है | पढ़कर, लिखकर या खाकर इत्यादि “कर” अथवा “करके” के अर्थ में “ल्यप्” प्रत्यय का प्रयोग होता है | “ल्यप्” प्रत्यय में “ल्” और “प्” का लोप होकर “य” शेष रहता है |
विशेष :- “कर” अथवा “करके” के अर्थ में धातु से पूर्व उपसर्ग होने पर ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग होता है | उपसर्ग न होने पर क्त्वा प्रत्यय का प्रयोग होगा |
Examples:-
उपसर्ग धातु प्रत्यय शब्द
आ + लिख् + ल्यप् = आलिख्य
अनु + वद् + ल्यप् = अनूद्य
वि + चारि + ल्यप् = विचार्य
आ + गम् + ल्यप् = आगम्य
नियम (Lyap pratyaya in sanskrit)
- ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग करते समय कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है |
- ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग करते समय धातु को “गुण या वृद्धि” नहीं होगा और “इ” भी नहीं लगेगा |
- ह्रस्व अ, इ, उ, ऋ के बाद ल्यप् प्रत्यय के प्रयोग से पहले “त्” (तकार) का आगम होता है |
- वच् आदि धातुओं को सम्प्रसारण होता है |
- दीर्घ “ऋ” को ‘ईर्’ और “पृ” में ‘ऊर्’ हो जाता है |
- नम्, हन्, मन्, और तनादिगण की धातुओं में “म्” का लोप विकल्प से होता है |
ल्यप् प्रत्यय के उदाहरण
उपसर्ग धातु प्रत्यय शब्द
सम् + पठ् + ल्यप् = सम्पठ्य
सम् + रक्ष् + ल्यप् = संरक्ष्य
वि + ज्ञा + ल्यप् = विज्ञाय
प्र + दा + ल्यप् = प्रदाय
प्र + आप् + ल्यप् = प्राप्य
आ + दा + ल्यप् = आदाय
नि + धा + ल्यप् = निधाय
नि + क्षिप् + ल्यप् = निक्षिप्य
वि + लिख् + ल्यप् = विलिख्य
अनु + भू + ल्यप् = अनुभूय
वि + क्री + ल्यप् = विक्रीय
वि + स्मृ + ल्यप् = विस्मृत्य
उत् + स्था + ल्यप् = उत्थाय
आ + नी + ल्यप् = आनीय
वि + जि + ल्यप् = विजित्य
वि + भज् + ल्यप् = विभज्य
प्र + स्तु + ल्यप् = प्रस्तुत्य
प्र + कृ + ल्यप् = प्रकृत्य
अनु + वद् + ल्यप् = अनुद्य
सम् + श्रु + ल्यप् = संश्रुत्य
सम् + आप् + ल्यप् = समाप्य
प्र + वच् + ल्यप् = प्रोच्य
प्र + हृ + ल्यप् = प्रहृत्य
अभि + वस् + ल्यप् = अभ्युष्य
आ + प्रच्छ् + ल्यप् = आपृच्छ्य
सम् + ग्रह् + ल्यप् = संगृह्य
सम् + पृच्छ् + ल्यप् = सम्पृच्छ्य
आ + गम् + ल्यप् = आगम्य / आगत्य
प्र + नम् + ल्यप् = प्रणम्य / प्रणत्य
अन्य प्रत्ययों को देखें :-