प्रथम वर्ण को पञ्चम वर्ण(Pratham varn ko pancham varn)
वर्ग के प्रथम वर्ण को पञ्चम वर्ण की परिभाषा – यदि वर्ग के पहले (क्, च्, ट्, त्, प्) वर्ण के बाद किसी भी वर्ग का पंचम ( पाँचवा – ङ्, ञ् , ण् , न् , म् ) वर्ण हो तो प्रथम (क्, च्, ट्, त्, प्) वर्ण को उसी वर्ग का पंचम (पाँचवा – ङ्, ञ् , ण् , न् , म्) वर्ण हो जाता है | इस संधि को अनुनासिक संधि (Anunasik sandhi) भी कहते है |
इस संधि को विस्तार से समझने के लिए हम एक सूत्र के माध्यम से समझने की कोशिश करते है |
सूत्र – यरोSनुनासिकेSनुनासिको वा
सूत्र की व्याख्या (Anunasik sandhi)
यदि पूर्व (पहले) पद के अन्त में यर् (ह् को छोड़कर सभी व्यंजन) प्रत्याहार हो तथा उत्तर पद (बाद वाले पद) में कोई अनुनासिक हो तो पदांत यर् को विकल्प से अनुनासिक हो जाता है |
यर् प्रत्याहार में कौन कौन से वर्ण होते है उसे समझते है |
यर् – य् , व् , र् , ल् , ञ् , म् , ङ्, ण् , न् , झ्, भ्, घ्, ढ, ध्, ज्, ब्, ग्, ड, द्, ख्, फ्, छ्, ठ, थ, च, ट्, त्, क्, प्, श्, ष, स् |
अनुनासिक वर्ण – ङ्, ञ् , ण् , न् , म्
विशेष – इस बात का ध्यान रखे कि पूर्व पद के अंतिम वर्ण वाले वर्ग का ही पञ्चम वर्ण में परिवर्तन करे | बाद वाले पद के प्रथम वर्ण के अनुसार परिवर्तन नही करना है |
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Jashatv Sandhi in Sanskrit (वर्ग के प्रथम वर्ण को तृतीय वर्ण)
प्रथम वर्ण को पञ्चम वर्ण के उदाहरण (Pratham varn ko pancham varn)
एतत् + मुरारि = एतन्मुरारि
उत् + नति: = उन्नति:
उत् + नीयते = उन्नीयते
जगत् + नाथ: = जगन्नाथ:
चित् + मय: = चिन्मय:
दिक् + नाथ: = दिङ्नाथ:
षट् + मुख = षण्मुख
षड् + मास: = षण्मास:
षट् + मास: = षण्मास:
षट् + नवति: = षण्णवति:
सत् + नाम = सन्नाम
सत् + मार्ग: = सन्मार्ग:
तत् + नमति = तन्नमति
उत् + नयनम् = उन्नयनम्
सत् + मति: = सन्मति:
सत् + नियम = सन्नियम
वाक् + मय: = वाङ्मय: / वांमय:
स्वप् + मय: = स्वम्मय:
तत् + मे = तन्मे
चेत् + निरर्थक: = चेन्निरर्थक:
एतत् + न = एतन्न
भवत् + मनोरथ: = भवन्मनोरथ:
सत् + नायिका = सन्नायिका
इस प्रकार से हम अनुनासिक सन्धि / वर्ग का प्रथम वर्ण को पंचम वर्ण सन्धि को समझ सकते है |